किस हाल में है आज पंडवानी गायिका तीजन बाई

देश रायपुर

विश्वविख्यात पंडवानी गायिका अपने गायकी से पूरे विश्व मे लोहा मनवाने वाली छत्तीसगढ़ के नाम गर्व से ऊंचा करने वाली पडवानी गायिका आज किस हाल में है उसकी कोई पूछ परख नही एक समय छत्तीसगढ़ का गौरव कही जाने गायिका आज गुमनामी के अंधेरे में जी रही है कुछ दिन पहले ही तीजन बाईं की हार्ट की सर्जरी हुई थी उससे पहले आधे शरीर मे उन्हें लकवा पैरालिसिस हो गया था छत्तीसगढ़िया की सरकार कही जाने वाली भूपेश  सरकार आज हमारे गौरव की कोई सुध नही ले रही है बुढ़ापे में आज तीजन बाई की कोई पूछ परख नही एकांत ओर अकेली जीवन व्यतीत कर रही है  पंडवानी गायिका..

  तीजनबाई की उपलब्धि

श्रीमती तीजनबाई को पण्डवानी गायन का शौक बचपन से ही था । तीजन ने पण्डवानी का औपचारिक प्रशिक्षण श्री उमैद सिंह देशमुख से पाया । जब वह अपने गुरु झाडूराम देवांगनजी को देखतीं, तो सोचा करती थीं कि वह भी ऐसी ही पण्डवानी गायिका बनेंगी । तीजन के घर में इसका काफी विरोध भी हुआ । घरवालों का विरोध सहकर भी तीजन ने पण्डवानी गायन को अपना क्षेत्र चुना ।

अपना पहला कार्यक्रम 13 वर्ष की अवस्था में ग्राम-चन्दखुरी (दुर्ग) में दिया । तत्पश्चात् इन्हें आदिवासी लोककला परिषद भोपाल के द्वारा भारत भवन, भोपाल में कार्यक्रम देने का अवसर मिला । इन्होंने पहली विदेश यात्रा सन् 1985-86 में पेरिस के भारत महोत्सव के दौरान की । तीजन के 3 पुत्र व पुत्रवधुएं हैं । अपने दल के हारमोनियम वादक तुलसीराम देशमुख से इन्होंने विवाह किया ।

तीजन ने नृत्य, अभिनय और लोकतत्व के बहुरंगी मिश्रण से पण्डवानी को इतना प्रभावशाली और लोकप्रिय बनाया है कि आज पण्डवानी पूरे भारत में ही नहीं, अपितु समूचे विश्व में भी पहचानी जाती है । तीजन कापालिक शैली की गायिका हैं । इस शैली में गाने वाला खड़े होकर कभी घुटनों का सहारा लेकर गाता है ।

इसमें अंग संचालन स्वरों के तीव्र आरोह-अवरोह के साथ संगीत का प्रयोग होता है । तम्बूरे का बजाया जाना पण्डवानी का विभिन्न अंग है । कथा को लयात्मकता देने के लिए एक साथी, जो हुंकारे देता रहता है, वह रागी कहलाता है । बीच-बीच में रोचक प्रश्नों के माध्यम से रागी व्याख्या की समकालीन पृष्ठभूमि तैयार करता है ।

 मूल आधार और शैली मूलतः महाभारत है

पण्डवानी का मूलाधार ”महाभारत” की कथा है । यह महाभारत की शाश्वत कथा का छत्तीसगढ़ी संस्करण है । पण्डवानी लोक साहित्य की विशुद्ध वाचिक परम्परा है । वादन एवं आंगिक अभिव्यक्ति की लोकतात्विक विधा है ।

यह मनोरंजन का साधन नहीं है; वरन् श्रद्धा, भक्ति, शौर्य एवं पराक्रम की मोहक अभिव्यक्ति है । यह स्वांग और संगीत का ऐसा संगम है, जहां महाभारत के अमर पात्रों में, विशेषत: भीम की शौर्य गाथाएं हिलोरे लेती है । समस्त मानवीय आवेगों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति के साथ महाभारत के पात्रों का अद्‌भुत लोक निरूपण हुआ है

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