प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजन बाई से मिलने पहुंचे स्वास्थ मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल, कुशलक्षेम पूछ 5 लाख की आर्थिक सहायता प्रदान की…

दुर्ग

दुर्ग/सत्य का सामना/ प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तिजनबाई से मिलने पहुंचे स्वस्थ मंत्री श्री श्याम बिहारी जायसवाल वहा पहुंचकर उन्होंने उनका स्वास्थ संबधी हाल चाल पूछा साथ ही उन्होंने सीएम श्री विष्णुदेव साय की ओर 5 लाख रूपए की आर्थिक राशि प्रदान की एवं उनके परिवार में नौकरी की मांग को लेकर सीएम श्री साय से चर्चा कर हरसंभव प्रयास करने का आश्वासन दिया….

 

गौरतलब है की सीएम श्री विष्णुदेव साय ने यह निर्देश दिया है की छत्तीसगढ़ के संस्कृति को देश विदेश में पहचान दिलाने वाले पद्मविभूषण तीजन बाई के इलाज में की कमी नही रहनी चाहिए उनके इलाज के किए डॉक्टरों की एक टीम भी तैयार की गई ही जो वक्त उनके इलाज के लिए मौजूद रहती है …..

 

 

जीवन परिचय पद्मभूषण तीजन बाई

 

भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस कलाकार के पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते सुनाते देखतीं और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया। १३ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।[4] एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।

 

प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुँदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता है। कभी दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुँचा देता है जहाँ वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज़ और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं।

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